श्रीकृष्ण वाणी

मनुष्य का स्वभाव है सोचना. सोच विचार करके निर्णय लेना और निर्णय लेके इस दुनिया बदलने की सोच को लेकर आगे बढ़ना परन्तु क्या हर कोई अपने निर्णय का परिणाम पाने में सफल होता है ? क्युँ  कुछ ही लोग संसार को बदल पाते है अन्य क्यों नहीं ? इसका कारण  है धैर्य और यही अंतर होता है सफल और असफल लोगों में.सफल वो होते है,  जो अपने सोच से अपने निर्णय से संसार को बदल देते है और असफल वो होते है जो इस संसार के भय से अपने सोच को अपने निर्णय को बदल लेते है. इसलिए संसार में यदि कुछ बदलना चाहते हो तो अपने जीवन के उद्देश्य तक पहुचने का अपना मार्ग बदले,अपनी सोच से अपना निर्णय ले.हम में से कई लोग इस विशाद से ग्रस्त है की हमारे जीवन में अपेक्षित सुख और समृद्धी कभी प्राप्त ही नहीं होगी क्यूंकि हमारा भाग्य ही यही है क्यूंकि हम ऐसे परिवेश में जन्मे है किन्तु क्या आपका जन्म आपका प्रारब्ध निश्चित करता है ? कुछ सीमा तक करता है.जैसे वर्षा की बूंद  बादलों से जन्म लेती है तो उसका प्रारब्ध होता है धरा पर गिरना किन्तु वो धरा पर कहाँ गिरती है ये निश्चित करता है की उसका भविष्य क्या होगा.

आप इस संसार में ऐसे कई लोगों को जानते होंगे जिन्हें आप स्वार्थी मानते है जो आवश्यकता पडने पर ही आपको स्मरण करते है अन्यथा वर्षो तक कहीं दिखाई भी नहीं देते।किन्तु जैसे ही उन्हें आपके सहायता की आवश्यकता पड़ती है ,हाथ जोड़कर आपके सामने सज्ज रहते है बड़ा क्रोध आता है न उनपर ,मन खिन्न हो जाता है मन से ये स्वर निकलता है की इस व्यक्ति की सहायता न करे किन्तु आप ऐसा कभी मत कीजिये.आप सोचेंगे की मैं क्यु कह रहा हु ऐसा,स्मरण रखिएगा,दीपक का स्मरण व्यक्ति तभी करता है जब अंधेरा गहरा होता है.उसे स्वार्थी मानकर स्वयं व्याकुल न हो.स्वयं को दीपक मानकर आनंदित हो जाए.भाग्यवान समझिये खुदको की किसी को आवश्यकता पड़ने पर आपकी याद आती है की आप संसार में किसी की सहायता करने योग्य है. इस जीवन में किसी के स्वार्थी होने से स्वयं का दृष्टिकोण ना बदले। बस यह दृष्टी रखिये स्वयं के परमार्थ पर. मन प्रसन्न होकर बोलेगा राधे राधे.

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